Daily Archives: July 26, 2015

खिले हुए फूल स्वयं पूजा है

तुम देखते हो न, लोग फूल तोड़ लेते हैं, जिंदा फूल! अभी खिला था, अभी हवाओं में नाचता था। अभी आकाश में अपनी सुरभि बिखेरता था! अभी सूरज की किरणों से गुफ्तगू करता था। अभी कितना मस्त था, कितना मदमस्त था। तोड़ लिया। निकल पड़ते हैं सुबह से लोग फूल तोड़ने। तोड़ लिया, चले मंदिर में चढ़ाने।

जिंदा फूल को मार डाला, और चढ़ा दिया पत्थर पर! जो चढ़ा था परमात्मा को, उसे छीन लिया परमात्मा से और चढ़ा दिया पत्थर पर!
ठीक बात कहते हैं गोरख :
सरजीव तोडिला निरंजीव पूजिला।

तुम हो कैसे पागल! अपने पत्थरों को लाकर फूलों पर चढ़ा देते तो ठीक था, मगर फूलों को तो मत तोड़ो। और लोग कहते हैं कि नहीं—नहीं फूलों को हम बहुत प्रेम करते हैं, इसलिए तोड़ते हैं।

मैं जबलपुर बहुत वर्षों तक रहा। मैंने एक प्यारा बगीचा लगा रखा था। उसमें बहुत फूल खिलते थे। आने लगे सुबह से लोग फूल तोड़ने। तिलक, चंदन—वंदन लगाये हुए। राम—राम, राम—राम जपते हुए। तो मैंने कहा : फूल मत तोड़ना। उन्होंने कहा : लेकिन हम तो पूजा के लिए तोड़ रहे हैं। पूजा के लिए तोड़ने में तो सब हकदार हैं।

मैंने कहा. और किसी काम के लिए तोड़ रहे हो तो दे भी सकता हूं मगर पूजा के लिए तो नहीं दूंगा।
उन्होंने कहा. आप बात कैसी करते हैं!

मैंने कहा : कम—से—कम पूजा के लिए तो नहीं। क्योंकि पूजा तो वे कर रहे हैं, उनकी पूजा में विध्‍न मत डालो। परमात्मा को वे चढ़े हैं। ही, तुम्हें —किसी स्त्री से प्रेम हो गया हो और एक फूल भेंट करना हो, भले ले जाओ। कम—से—कम जिंदा को तो चढाओगे।

नहीं—नहीं, उन्होंने कहा, हम तो भगवती जी के मंदिर में जाते हैं।
मैंने कहा : जिंदा भगवती को चढ़ाओ तो तोड़ सकते हो, मदिर—वदिर के लिए नहीं।

तो मैंने एक तख्ती लगा छोड़ी थी कि सिर्फ पूजा के लिए छोड्कर और किसी भी काम के लिए तोड़ना हो तो तोड़ लेना। मगर पूजा की बात बर्दाश्त नहीं की जा सकती।
इस बगीचे में भी फूल खिलते हैं, वे अपना खिलकर वहीं मुर्झा जाते हैं। वहीं से चढ़े हैं परमात्मा को। उनको तोड़ना क्या है

ओशो

Counselling at manavparivar medical camp

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Counseling at manavparivar medical camp on July 26, 2015